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(as of Oct 03, 2024 11:30:35 UTC – Details)
यह पुस्तक एक ऐसे लोकसेवक की संघर्षमय जीवन-यात्रा के बारे में बताती है; जिसने अपने कार्यकाल के दौरान उत्पन्न तमाम राजनीतिक विरोधों के बावजूद सफलता हासिल की थी। अनिल स्वरूप अपनी इस पुस्तक के माध्यम से अपने पाठकों के साथ अपने उन अनुभवों को साझा करते हैं; जिन्होंने उन्हें लोकसेवक के अपने श्रमसाध्य प्रशिक्षण के दौरान एक आकार दिया तथा व्यक्ति एवं व्यवस्था-जनित संकटों का सामना करने की शक्ति भी दी। एक लोकसेवक के रूप में अपने अड़तीस वर्षों के कार्यकाल में उनका सामना अनेक महत्त्वपूर्ण चुनौतियों से हुआ; जिनमें उत्तर प्रदेश के कोयला माफिया; बाबरी ढाँचा विध्वंस के बाद उपजा संकट तथा शिक्षा माफियाओं का सामना भी शामिल था।
अनिल स्वरूप के इन संस्मरणों में उनकी श्रमसाध्य पीड़ा और संकट भी शामिल हैं; जिनमें उनकी भूमिका निर्णय लेनेवाले तथा इस व्यवस्था के आंतरिक प्रखर अवलोकनकर्ता की भी रही। वे अपनी सफलताओं और हताशा—सार्वजनिक और वैयक्तिक तौर पर जिन्हें उन्होंने जिया है—का वर्णन बखूबी करते हैं। उनकी प्रखर लेखनी में एक नौकरशाह की प्रबंधकीय कुशलता भी नजर आती है।
यह पुस्तक राज्य एवं राष्ट्रीय स्तर के बहुत से महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर अनिल स्वरूप के प्रयासों और उनकी उत्साही संलिप्तता की पराकाष्ठा भी दरशाती है। ये संस्मरण नितांत व्यक्तिगत होने के साथ-साथ उनका यह विश्वास भी स्पष्ट करते हैं कि इससे अन्य लोगों में भी इसी तरह के कार्य करने की प्रेरणा जाग्रत् हो।
‘‘यह पुस्तक ईमानदारी और लगन के साथ एक ऐसे व्यक्ति ने लिखी है; जिसने जीवन भर संवेदनहीन व्यवस्था में काम किया। मैं तहे दिल से इसे पढ़ने की सलाह देता हूँ।’’
—गुरचरण दास; लेखक और स्तंभकार
‘‘काफी समय से हम एक नौकरशाह से शासन में प्रभावी नएपन के विषय में सुनना चाहते थे। यह उस उम्मीद को विश्वसनीय रूप से पूरा करती है।’’
—प्रभात कुमार; पूर्व कैबिनेट सचिव और पूर्व राज्यपाल; झारखंड
‘‘यह पुस्तक शासन में उनके कौशल का सटीक वर्णन करती है कि किस प्रकार उन्होंने सांप्रदायिक तनाव को शांत करना; पर्यावरण संबंधी स्वीकृतियों में ‘अंधाधुंध कमाई’ का पर्दाफाश करना सीखा।’’
—शेखर गुप्ता; संस्थापक संपादक; द प्रिंट और
पूर्व एडिटर इन चीफ; द इंडियन एक्सप्रेस
‘‘यह तमाम तरह के अनुभवों से भरे जीवन की हैरान करने वाली सच्ची कहानी है—सभी को जरूर पढ़ना चाहिए।’’
—तरुण दास; मेंटर; सीआईआई
‘‘बेहद दिलचस्प…’’
—परमेश्वरन अय्यर; सचिव; ग्रामीण स्वच्छता
(स्वच्छ भारत); भारत सरकार
Naukarshah Hi Nahin… by Anil Swarup: Anil Swarup’s book provides a candid account of his experiences and insights gained during his distinguished career as a civil servant in the Indian Administrative Service (IAS). Through his narrative, readers gain valuable insights into the workings of the Indian bureaucracy, policymaking, and governance.
Key Aspects of the Book “Naukarshah Hi Nahin… by Anil Swarup”:
Civil Service Journey: Anil Swarup shares his personal journey as a civil servant, offering a behind-the-scenes look at the challenges and achievements of his career.
Bureaucratic Insights: The book provides a glimpse into the complexities of the Indian bureaucracy and its role in shaping policies and governance.
Public Service: “Naukarshah Hi Nahin…” underscores the importance of public service and the responsibilities that come with serving the nation in a bureaucratic capacity.
Anil Swarup is a retired Indian Administrative Service (IAS) officer known for his contributions to public service and policymaking. “Naukarshah Hi Nahin…” reflects his commitment to transparency and accountability in government and offers a firsthand account of his experiences in the civil service.
From the Publisher
ASIN : B07Z224FXG
Publisher : Prabhat Prakashan (15 February 2020)
Language : Hindi
File size : 1396 KB
Text-to-Speech : Enabled
Screen Reader : Supported
Enhanced typesetting : Enabled
Word Wise : Not Enabled
Print length : 181 pages